Anupras Alankar Ki Paribhasha
अनुप्रास अलंकार Anupras Alankar में काव्य सौंदर्य की जटिलता और ध्वनियों की पुनरावृत्ति से शब्दों में लय और संगीत की अद्भुत मिठास घुलती है। यह अलंकार पाठक को वाक्यांश में निहित ध्वनि-लहरी में डुबो देता है, जहाँ ध्वनियाँ बार-बार लौटकर आती हैं और अभिव्यक्ति का सौंदर्य बढ़ा देती हैं। “अनु” का अर्थ है ‘पुनः पुनः’ और “प्रास” का मतलब है ‘वर्ण’ या ‘ध्वनि’। इस प्रकार, अनुप्रास अलंकार में किसी विशेष ध्वनि का वाक्य में कई बार होना उसे आकर्षक और दिलचस्प बना देता है, जिससे पाठक की रुचि और अधिक गहराई में प्रवेश कर जाती है।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण Anupras Alankar Udaharan
- “जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप” – इस उदाहरण में “म” वर्ण की आवृत्ति शब्दों में लय और मधुरता भर देती है, जो पाठक के कानों में गूंजती है और पाठ्य की ध्वनि को मर्मस्पर्शी बनाती है।
- “मुदित महीपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत्र बुलाए” – यहाँ “म” और “स” वर्ण की पुनरावृत्ति से पाठ में संगीतमयता उत्पन्न होती है, जो शब्दों को एक लयबद्धता और सौंदर्य प्रदान करती है।
अनुप्रास अलंकार का उद्देश्य Anupras Alankar Ka Uddeshy
अनुप्रास अलंकार Anupras Alankar का प्रयोग प्रायः काव्य, कविता, और साहित्य में इसलिए किया जाता है ताकि ध्वनि की गहराई और संगीत की मधुरता के माध्यम से शब्दों का प्रभाव बढ़ सके। इससे पाठक का ध्यान खास ध्वनियों की तरफ केंद्रित होता है, और वह लेखक की कला का आनंद लेकर उसकी रचना से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता है।
कुछ और अनुप्रास अलंकार के उदाहरण
- “कालिंदी कूल कदंब की डारिन” – यहाँ “क” ध्वनि की पुनरावृत्ति से दृश्य में एक स्वाभाविक सौंदर्य का अनुभव होता है।
- “बरसत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास” – “ब” ध्वनि की पुनरावृत्ति वर्षा के दृश्य में ध्वनि का प्रभावशाली चित्रण करती है।
- “कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी” – इस पंक्ति में “क” और “कू” ध्वनियाँ पाठक को वसंत के कूकने की ध्वनि का आभास देती हैं।
इन अनुप्रास अलंकार Anupras Alankar के उदाहरणों से स्पष्ट है कि जब किसी ध्वनि की पुनरावृत्ति शब्दों में की जाती है, तो वह शब्द, वाक्य, और भावनाओं में गूंज उत्पन्न करती है और संपूर्ण पंक्ति को एक नया अर्थ देती है। अनुप्रास अलंकार Anupras Alankar भाषा की रचना को केवल सुंदर ही नहीं, बल्कि गूढ़ और संगीतमय भी बना देता है, जहाँ पाठक शब्दों की गहराई में उतरता चला जाता है और उस रचना से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता है।
अनुप्रास अलंकार के प्रकार Anupras Alankar Ki Parkar
अनुप्रास अलंकार Anupras Alankar में ध्वनियों की पुनरावृत्ति का विशेष महत्व है, और इसे विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। ये प्रकार न केवल काव्य को लयबद्ध और आकर्षक बनाते हैं, बल्कि लेखक की अभिव्यक्ति को और भी प्रभावी बना देते हैं। यहां हम अनुप्रास के पाँच प्रमुख प्रकारों पर चर्चा करेंगे:
1. छेकानुप्रास अलंकार
यह अलंकार तब होता है जब किसी वाक्यांश में अनुक्रमिक रूप से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक ही बार होती है। इस प्रकार के अनुप्रास में व्यंजनों का क्रम में पुनरावृत्ति होती है, जो ध्वनियों की लय और आकर्षण में इज़ाफा करती है।
उदाहरण: “रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।”
यहां ‘रीझि-रीझ’, ‘रहसि-रहसि’, ‘हँसि-हँसि’, और ‘दई-दई’ में छेकानुप्रास की पुनरावृत्ति होती है, जहाँ व्यंजनों का प्रयोग उसी क्रम में किया जाता है।
2. वृत्यनुप्रास अलंकार
जब किसी वाक्यांश में एक ही व्यंजन का एक या अधिक बार आवृत्त होना हो, तो उसे वृत्यनुप्रास अलंकार कहा जाता है। इसमें व्यंजन एक ही रूप में पुनरावृत्त होते हैं, परंतु उनका क्रम निश्चित नहीं होता।
उदाहरण: “सपने सुनहले मन भाये।”
“सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।”
यहां ‘स’ ध्वनि की आवृत्ति एक या अधिक बार होती है, लेकिन स्वरूप में कोई बदलाव नहीं होता।
3. लाटानुप्रास अलंकार
इस अलंकार में शब्दों या वाक्यांशों की पुनरावृत्ति तो समान होती है, लेकिन उनके अर्थ या भाव में भिन्नता होती है। यह शब्दों के विभिन्न अर्थों को व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है।
उदाहरण: “तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।”
यहां ‘तेगबहादुर’ की आवृत्ति समान है, लेकिन दोनों वाक्यों में उसका अर्थ या भाव अलग-अलग है।
4. अन्त्यानुप्रास अलंकार
इस अलंकार में शब्दों के अंत में तुक मिलती है, जिससे वाक्य में एक लय उत्पन्न होती है। तुकांत शब्दों की पुनरावृत्ति के कारण वाक्य का प्रभाव बढ़ जाता है।
उदाहरण: “लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग?”
यहां ‘आग’ और ‘नाग’ शब्दों के अंत में तुक की पुनरावृत्ति हो रही है, जिससे वाक्य में लय और प्रभाव उत्पन्न हो रहा है।
5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार
जब कोई शब्द या ध्वनि कानों को मधुर लगती है और वह वाक्य में बार-बार आवृत्त होती है, तो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहा जाता है। यह ध्वनियों की सुस्वरता को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण: “दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।”
यहां ‘थ’ ध्वनि की पुनरावृत्ति कानों में एक मधुरता और लय उत्पन्न करती है, जिससे शब्दों की गूंज अधिक प्रभावशाली हो जाती है।
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