अलंकार की उत्पत्ति Alankar ki Utpatti
अलंकार Alankar शब्द का सबसे पहला उल्लेख संस्कृत के प्रख्यात विद्वान आचार्य भामह द्वारा हुआ था। उन्होंने इसे सौंदर्यशास्त्र का एक साधन बताया—एक ऐसा उपकरण, जो भाषा की गूढ़ता और आकर्षण को उजागर करता है। अलंकार भाषा को केवल सौंदर्य प्रदान नहीं करता, बल्कि उसे एक अनोखी शक्ति और गहराई भी प्रदान करता है।
अलंकार की परिभाषा Alankar Ki Paribhasha
“अलंकार” Alankar का अर्थ है—अलंकृत करना या सजाना। ये वे आभूषण हैं जो काव्य को अधिक आकर्षक और मनोहारी बनाते हैं। सुंदर शब्दों का संयोजन करते हुए अलंकार कविता को ऐसा सौंदर्य प्रदान करते हैं कि वह पाठक के मन को भिगो देता है। आचार्य भामह ने इसे ‘अलंकार शास्त्र’ में व्यापकता से वर्णित किया है और उन्हें इस सम्प्रदाय का जनक माना जाता है।
अलंकार के भेद Alankar Ke Bhed
अलंकार Alankar को तीन मुख्य प्रकारों में बाँटा गया है:
- शब्दालंकार – इसमें वर्ण, वाक्य या शब्द की ध्वनि के आधार पर अलंकार उत्पन्न होता है। जैसे: अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि।
- अर्थालंकार – इसमें अलंकार का आधार शब्द नहीं, बल्कि उनके अर्थ होते हैं। जैसे: उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, मानवीकरण आदि।
- उभयालंकार – जहाँ शब्द और अर्थ दोनों से सौंदर्य प्रकट होता है, वहाँ उभयालंकार पाया जाता है।
शब्दालंकार
शब्दालंकार काव्य में शब्दों की ध्वनि, लय, या पुनरावृत्ति के माध्यम से सौंदर्य का सृजन करते हैं, जिससे कविता में एक विशेष प्रकार का आकर्षण उत्पन्न होता है। यह अलंकार शब्दों की अद्वितीय रचना के द्वारा काव्य को लयात्मक बनाते हैं।
- अनुप्रास अलंकार: वर्णों की पुनरावृत्ति से अनुप्रास अलंकार बनता है। उदाहरण:
- मधुर मृदु मंजुल मुख मुसकान (यहाँ ‘म’ वर्ण की पुनरावृत्ति अनुप्रास अलंकार है)।
- यमक अलंकार: यमक में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होती है, लेकिन हर बार उसका अर्थ अलग होता है। उदाहरण:
- कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। (यहाँ ‘कनक’ शब्द के दो अर्थ हैं—सोना और धतूरा)।
- श्लेष अलंकार: श्लेष में एक शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं, जो पाठक को एक ही शब्द में गहरी अनुभूति प्रदान करते हैं। उदाहरण:
- माया महा ठगिनि हम जानी। (यहाँ ‘तिरगुन’ के दो अर्थ हैं—गुण और रस्सी)।
अर्थालंकार
अर्थालंकार वे होते हैं, जो काव्य में भाव और अर्थ के माध्यम से सौंदर्य का संचार करते हैं। ये अलंकार विचार और कल्पना की अद्भुत गहराई उत्पन्न करते हैं।
- उपमा अलंकार: उपमा में एक वस्तु की तुलना दूसरी से की जाती है, जैसे:
- प्रातः नभ था, बहुत गीला शंख जैसे। (नभ की तुलना शंख से की गई है)।
- रूपक अलंकार: इसमें उपमेय में उपमान का आरोप होता है। उदाहरण:
- आए महंत बसंत। (यहाँ बसंत पर महंत का आरोप है, जिससे रूपक अलंकार बनता है)।
- अतिशयोक्ति अलंकार: अतिशयोक्ति में किसी वस्तु का अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है। जैसे:
- हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग। लंका सगरी जरि गई, गए निशाचर भाग।। (यहाँ घटना को अतिशयोक्तिपूर्वक वर्णित किया गया है)।
- मानवीकरण अलंकार: जब कवि प्रकृति या किसी निर्जीव वस्तु में मानवीय गुणों का आरोप करता है, तो मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे:
- बीती विभावरी जाग री, अंबर पनघट में डुबो रही, ताराघट उषा नागरी। (यहाँ उषा को मानवीकरण कर एक स्त्री के रूप में वर्णित किया गया है)।
उभयालंकार
उभयालंकार वह अलंकार Alankar है जिसमें शब्द और अर्थ दोनों के सौंदर्य से काव्य में चमत्कार और आकर्षण उत्पन्न होता है। इसे शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का समन्वय कहा जा सकता है। जब किसी कविता में शब्दों का ध्वन्यात्मक सौंदर्य (जैसे लय, तुकबंदी) और साथ ही उनके अर्थ का गूढ़ भाव मिलकर एक विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं, तब वह उभयालंकार के अंतर्गत आता है।
उभयालंकार में भाषा की संरचना और उसके अर्थ, दोनों से ही अलंकरण होता है, जिससे पाठक को दोहरी अनुभूति होती है—एक ओर लय और ध्वनि का सौंदर्य, और दूसरी ओर भाव की गहराई। इस प्रकार, उभयालंकार काव्य को एक संपूर्ण कलात्मक स्वरूप प्रदान करता है।
उभयालंकार का उदाहरण:
- हंसते हैं फूलों से, बरसते हैं सितारों से।
- यहाँ “हंसना” और “बरसना” शब्दों के प्रयोग से सुंदर ध्वनि उत्पन्न होती है, साथ ही इन शब्दों से फूलों और सितारों का अर्थपूर्ण चित्रण भी होता है। इसलिए, यह उभयालंकार का उदाहरण है।
- शशि मुख सुभग, रजनी के दीपक बने।
- इस पंक्ति में “शशि” और “दीपक” शब्दों से अर्थ का चमत्कार उत्पन्न होता है, और साथ ही इनकी ध्वनि कविता को मधुर बनाती है। यहाँ शब्द और अर्थ दोनों से अलंकरण हुआ है, इसलिए यह उभयालंकार है।
अलंकार के तीनों प्रकारों का सार
अलंकार Alankar के तीनों प्रकार—शब्दालंकार, अर्थालंकार, और उभयालंकार—काव्य को न केवल सुंदर बनाते हैं, बल्कि उसमें गहराई और अर्थ की नई परतें भी जोड़ते हैं।
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